Saturday, 22 October 2016

तुझको चलना होगा... तुझको चलना होगा...



मैं जब भी यहाँ आता हूँ... यहाँ पर घंटों बैठा रहता हूँ, और देखता रहता हूँ इस नदी के बहते हुवे पानी को... यह चौड़ा पहाड़ और दो किनारे जो हमेशा एक दूसरे से उतनी ही दूर
... यह मांझी... यह कश्ती... और यह लहरों पे लहराता हुवा नाचता हुवा गीत...
मैं जब भी इस गीत को सुनता हूँ ... तो मुझे ऐसे लगता है जैसे मेरा इनके साथ एक बहुत पुराना मेल है... जैसे इस धारा के साथ मुझे भी कहीं और जाना है...
कहीं दूर जाना है... जैसे मुझे भी किसी नाव का इंतेज़ार है... किसी माझी की ज़रूरत होती है |


1 comment:

Anand Natarajan said...

सुन्दर पंक्तियाँ आपके
सुन्दर बोल गीत के!

‘Effervescent, mercurial, genius, a genuinely warm and wonderful human Being’

Tribute Summer of 1995 : He arrived in Hyderabad, from Chennai, to take up the assignment as Assistant Regional Manager, Advt, at The Hindu....